यहाँ हम सुनेंगे कविताएं – पेड़ों, पक्षियों, तितलियों, बादलों, नदियों, पहाड़ों और जंगलों पर – इस उम्मीद में कि हम ‘प्रकृति’ और ‘कविता’ दोनों से दोबारा दोस्ती कर सकें। एक हिन्दी कविता और कुछ विचार, हर दूसरे शनिवार... Listening to birds, butterflies, clouds, rivers, mountains, trees, and jungles - through poetry that helps us connect back to nature, both outside and within. A Hindi poem and some reflections, every alternate Saturday...
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अतीत नहीं होती नदी | Ateet Nahin Hoti Nadi
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दामोदर खड़से अपनी कविता 'अतीत नहीं होती नदी' में न सिर्फ एक नदी के सौंदर्य को दर्शाते हैं, बल्कि मनुष्य के लिए उसकी प्रासंगिकता के कई पहलू भी हमारे सामने रखते हैं। In his poem 'Ateet Nahin Hoti Nadi', Damodar Khadse reveals to us the various ways in which a river is not only beautiful but also ever present and every relevant for mankind. कविता / Po…
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पृथ्वी का मंगल हो | Prithvi Ka Mangal Ho
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करोना लॉकडाउन के दिनों में लिखी गई अशोक वाजपेयी की यह कविता, पृथ्वी और उसके बाशिंदों के लिए एक प्रार्थना तो है ही, पर साथ ही प्रकृति पर मनुष्य की गहरी निर्भरता का एक अनुस्मारक भी है। Ashok Vajpeyi's poem, written during the Covid lockdown, is not only a prayer for the Earth and all its inhabitants but is also a reminder of the extent to which human…
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धरती के इस हिस्से में | Dharti Ke Is Hisse Mein
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राजेश जोशी की कविता 'धरती के इस हिस्से में', एक समुद्र तट का चित्रण करती है - जहाँ चिड़ियों, लहरों, मछलियों और पेड़ों की कई आवाजों के बीच भी एक गहरा एकांत है। साथ ही यह कविता हमसे यह भी पूछती नज़र आती है, कि आखिर यह एकांत अब हमारे लिए इतना दुर्लभ क्यों हो गया है? Rajesh Joshi's poem 'Dharti Ke Is Hisse Mein' depicts a seashore - where amidst the so…
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अरुण कमल अपनी कविता अमरफल में एक खास तरह के फल की तलाश में हैं। जो ना सिर्फ उनके बचपन की स्मृतियों से जुड़ा है, बल्कि जो अपनी ही परिपक्वता के उल्लास से फट पड़ा है। एक ऐसा फल जो प्रकृति की प्रचुरता और परिपूर्णता का प्रतीक बनकर सामने आता है। In his poem Amarphal, Arun Kamal is in the search of a special kind of fruit. One that is not only tied to the m…
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जिस आरा मशीन की बात विश्वनाथ प्रसाद तिवारी अपनी कविता में करते हैं, वह ना सिर्फ कुछ पेड़ों को काटती है, बल्कि मनुष्य और प्रकृति के गहरे रिश्ते पर भी आघात करती है। ऐसे में यह कविता हमें सचेत करती है कि यदि हमने अपने उपकरणों को काबू में नहीं किया तो वह हमारे अस्तित्व को ही खतरे में डाल देंगे। The sawmill in Vishwanath Prasad Tiwari's poem 'Aaraa Machi…
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पानी क्या कर रहा है | Paani Kya Kar Raha Hein
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इस कविता में नरेश सक्सेना हमें याद दिलाते हैं कि प्रकृति कोई मृत पदार्थ नहीं बल्कि एक जीता जागता पारितंत्र है, जिसका हर तत्व उसे संतुलन में रखने के लिए अपना पूरा कर्तव्य निभा रहा है। ऐसे में वह मानव जाति से पूछते हैं कि जहाँ प्रकृति निरंतर अपना फ़र्ज़ निभा रही है, वहीं मनुष्य की ज़िम्मेदारी कौन तय करेगा? In this poem Naresh Saxena reminds us that natu…
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इस पॉडकास्ट शृंखला में हम मिलेंग हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध कवियों से, सुनेंगे उनकी कविताएँ, और जानेंगे उन कविताओं के पीछे की कहानियाँ।Autor: Nayi Dhara Radio
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इस बाल कविता में गुलज़ार साहब को अपने बाग की मिट्टी किसी जादूगर की तरह लगती है - जो रंग, रूप और स्वाद की अनेक तरकीबों से उन्हें अक्सर विस्मय में डाल देती है। In this childrens' poem, Gulzar sees a magician in his garden soil - who, with his colorful and varied tricks frequently puts the poet in awe. कविता / Poem – ज़मीं को जादू आता है! | Zameen Ko Ja…
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नेमिचन्द्र जैन की इस कविता में उस अद्भुत दृश्य का चित्रण है, जब बरसात के बाद लोग अपनी छतों पर निकल आते हैं, और कुछ देर के लिए अपनी सारी परेशानियों को भूल कर प्रकृति के सौन्दर्य में खो जाते हैं। In this poem, Nemichandra Jain describes that wonderful scene when people gather at their rooftops after rain. Soaking in the natural beauty, and for a brie…
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शहर में खोया जंगल | Sheher Mein Khoya Jungle
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'सतपुड़ा के जंगल' एक निमंत्रण है, उन जंगलों में प्रवेश करने का, जिन्हें हम दुर्गम और डरावना मान कर अक्सर उपेक्षित कर देते हैं। भवानीप्रसाद मिश्र की मानें तो यही जंगल हमें अपने आप से जुड़ने का रास्ता दिखाते हैं। 'Satpura Ke Jungle', invites us to step inside forests, which we often disregard on account of fear and inaccessibility. For Bhawani Prasad M…
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इस कविता में नीम के फूलों की महक कुँवर नारायण को कभी अपनी माँ, कभी अपने पिता, कभी अपने बचपन तो कभी अपनी पूरी संस्कृति की याद दिलाती है - वह संस्कृति जहां मानवता और प्रकृति एक दूसरे में पूरी तरह घुले मिले हुए हैं। The smell of Neem flowers reminds Kunwar Narain, sometimes of his mother, sometimes of his father, sometimes of his childhood, and someti…
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विनोद कुमार शक्ल की कविता 'जलप्रपात है समीप' हमें एक झरने के पास ला कर खड़ा कर देती है। वो हमें मजबूर करती है के हम उसकी आवाज़ को गौर से सुनें - और उस एक आवाज़ में छुपी कई छोटी-छोटी आवाजों को पहचानें। ताकि हम भी कवि की तरह उनके साथ सुर में सुर मिला कर, प्रकृति के संगीत में शामिल हो सकें। In his poem 'Jalprapaat Hai Sameep', Vinod Kumar Shukla brings u…
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गुलज़ार को शब्दों का चित्रकार माना जाता है। उनकी कविता 'थिंपू-भूटान' में एक पहाड़ हमसे इस तरह मुख़ातिब होता है, मानो हमारे परिवार का ही कोई बुज़ुर्ग हो - जो मानव जीवन की संकीर्णता को देखकर हैरान भी है और परेशान भी। Gulzar is known as a painter of words. In his poem 'Thimpu-Butan', he imagines the mountain to be an old relative. At once inquisitive, be…
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केदारनाथ सिंह की कविता ‘नदियाँ’ एक नदी की तरह ही बहती है। वह हमें कई परिदृश्य दिखाती है, कई ऐसे मोड़ लेती है जो हमें चकित कर छोड़ते हैं, और अंततः जब उसके निर्मल जल में हम अपना प्रतिबिंब देखते हैं, तो पाते हैं के हम एक नदी के ही भूले-बिसरे रिश्तेदार हैं। Kedarnath Singh’s poem ‘Nadiyaan’ flows much like a river. It shows us many landscapes, takes many…
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पेड़ जो हमारे पड़ोसी हैं | Ped Jo Humaare Padosi Hain
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कुँवर नारायण अपनी कविताओं में अक्सर पेड़ों से बातें करते थे। उनकी कविता 'मेरा घनिष्ठ पड़ोसी' हमें एक ऐसे पेड़ से मिलवाती है जो न सिर्फ उनका पुराना पड़ोसी है बल्कि उनके सुख-दुख का साथी और उनका प्रिय मित्र भी है। तो चलिए उनकी आँखों से इस पेड़ को देखें ताकि हम भी अपने पड़ोसी पेड़ों से दोस्ती कर सकें। Kunwar Narain often spoke to trees in his poetry. In his p…
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