Keerti ka Vihan Hun | Kanhaiya Lal Pandya 'Suman'
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कीर्ति का विहान हूँ | स्व. कन्हैया लाल पण्ड्या ‘सुमन’
मैं स्वतंत्र राष्ट्र की कीर्ति का विहान हूँ।
काल ने कहा रुको
शक्ति ने कहा झुको
पाँव ने कहा थको
किन्तु मैं न रुक सका, न झुक सका, न थक सका
क्योंकि मैं प्रकृति प्रबोध का सतत् प्रमाण हूँ
कीर्ति का विहान हूँ।
भीत ने कहा डरो
ज्वाल ने कहा जरो
मृत्यु ने कहा मरो
किन्तु मैं न डर सका, न जर सका, न मर सका
क्योंकि राष्ट्र भाग्य-व्योम का ज्वलंत प्राण हूँ
कीर्ति का विहान हूँ।
ले नवीन साधना
ले नवीन कामना
ले नवीन भावना
नाश से न मैं फिरा, न मैं गिरा, न मैं डरा
क्योंकि मैं सृजन नवीन का अजर निशान हूँ
कीर्ति का विहान हूँ।
मैं नया तूफ़ान हूँ
मैं नया वितान हूँ
मैं नया विधान हूँ
देश के सौभाग्य का भूत-वर्त-भावी हूँ
राष्ट्र के सघन तिमिर के नाश में प्रधान हूँ
कीर्ति का विहान हूँ।
मैं नया विकास हूँ
मैं नया प्रकाश हूँ
मैं नवीन आश हूँ
मैं नवीन दृश्य हूँ, भविष्य हूँ, मनुष्य हूँ
क्योंकि मैं क्षितिज अनन्त सा नया वितान हूँ
कीर्ति का विहान हूँ।
मैं स्वतंत्र राष्ट्र की कीर्ति का विहान हूँ।
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